किन्नर संघर्ष की अभिव्यक्ति - 'मेरे होने में क्या बुराई है'
डॉ. पिंकी पारीक,a अनिता कुमारीb
aसहाय्यक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, वनस्थली विद्यापीठ निवाई जयपुर, ३०४०२२ राजस्थान, भारत
bशोधार्थी, हिंदी विभाग, वनस्थली विद्यापीठ निवाई जयपुर, ३०४०२२ राजस्थान, भारत
Keywords
छुआछछुत हिजड़ा किन्नर अरावनी खूसरा थर्ड जेंडर ट्रांसजेंडर आंतरिक दर्दAbstract
भारतीय समाज प्राचीन काल से ही रूढ़िपरंपराओं पर आधारित रहा है l यहां छुआछूत की समस्या सदैव बनी रही है l हमारे समाज मेंकुछ ऐसे लोग भी रहते हैं,जो समाज का हिस्सा होते हुए भी अकेले हैं l आमतौर पर हम इन्हेंरेलवे स्टैंड, बस स्टैंड, ट्रैफिक सिग्नल या फिर किसी के घर शुभ कार्य होने पर बधाइयांलेते- देखते हैं l समाज इन्हें अलग-अलग नामो से पुकारता है जैसे हिजड़ा, किन्नर, मौसी,उभयलिंगी, पवैया, यूनक, खोजा, जानखा, ख्वाज सरा, अरावानी, खुसरा, मंगलमूखी, थर्डजेंडर,ट्रांसजेंडर इत्यादि l किन्नर वर्ग एक ऐसा वर्ग है जिसकाजन्म तो पुरुष जननांग के साथ हुआ है किंतु उनकी भावनाएं एक स्त्री की होती है l अर्थातजो न तो स्त्री वर्ग में आता है, और मैं ही पुरुष वर्ग में उन्हें किन्नर माना गयाहै l प्राचीन भाषाविद पाणिनिकृत अष्टाध्याय में इस भेद को स्पष्ट करते हुए लिखा है-“स्तनकेशवटी स्त्री स्याल्लोमरा : पुरुष :सवत उभयोरन्तर भाज्य तदभावे नंपुसकम ll” 'मेरे होने में क्या बुराई है' उपन्यासरेनू बहल का किन्नर जीवन पर आधारित किन्नर जीवन में सकारात्मक बदलाव की पैरवी करताहै l यह उपन्यास दर्शाता है कि हमारा समाज उसी को महत्व देता है जो उत्पादन के योग्यहै l चूंकि किन्नर समाज के इस सिद्धांत पर खरा नहीं उतरता, तो उसे उपेक्षा का शिकारहोना पड़ा l लेखिका ने इस उपन्यास में 'शेखर' नामक एक किन्नर के आंतरिक दर्द को व्यक्तकिया है
Received: 15 February 2024, Revised: 18 February 2025, Accepted: 19 February 2025, Available online: 20 February 2025
Cite As
डॉ. पिंकी पारीक, & अनिता कुमारी. (2025). किन्नर संघर्ष की अभिव्यक्ति – 'मेरे होने में क्या बुराई है'. International journal of arts, social sciences and humanities, 03(01), 08–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.14899654
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